आज मातृ दिवस है। हम माँ की कई परिभाषा हो गयी है माँ , मम्मी , मम्मा और मोम। आज सब अपनी माँ के लिए शॉपिंग करते है रेस्टोरेन्ट ले के जाते है। ज्वेलरी लेते है कोई उनके लिए खाना बनता है तो कोई बाहर से खाना या केक मंगवाते है। कोई कार्ड ले के आता है। माँ को बहुत अच्छा महसूस होता है बहुत ख़ुशी होती है, माँ मुस्कुराती है तो कितना अच्छा है। आज उनके चेहरे पे मुस्कुराहट है। लेकिन क्या हम कभी उनके साथ कुछ पल बैठ कर उनसे कुछ देर कुछ बाते की हो या पूछा हो माँ आपको कुछ चाहिए या आपको कुछ कहना है या चलो आज बाते करते है ।आपका मनपसंद खाना , मनपसंद रंग या मनपसंद गाना। बैठ के पूछ के देखिये उनकी आँखों में जो ख़ुशी होगी वो ये कार्ड,ज्वेलरी,कपडे या खाने से काफी बड़ी होगी और मेरा तो ये मानना है हमें इस दिन की जरुरत ही नहीं क्यूंकि हमारे लिए हर दिन मातृ दिवस है। क्यूंकि हमारे पास माँ है।
बच्चे के दुनिया में आने से पहले ही माँ बाप की सोच की दुनिया बदल जाती है। की जब बेबी आएगा तो ये करेंगे ऐसे करेंगे। बल्कि मैं ये कहना चाहूंगी की बेबी के आने से सोच और सुलझ जाती है। ये बात अभी नई माँ को अच्छे से समझ आती होगी. आजकल तो बेबी के आने से ले के पल पल की यादो को हम मोबाइल में वीडियो और फोटो के द्वारा संजो के रखते है। और उनकी छोटी छोटी चीजे पहला कपडा , पहले जूते सैंडल ,पहला खिलौना और जब हम इन सब चीजों को देखते है तो हम उन यादो में वापस चले जाते हो और हमारे चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आ जाती है और माँ से इतनी खुशी महसूस होती हैं जिसका कोइ जीकर ही नहीं है। फिर बेबी जब थोड़ा बड़ा होता हो तो उसका पहला शब्द बोलना , उसका घुटनो के बल चलना ,जोर जोर से हंसना ,रोना, फिर धीरे धीरे किसी चीज का सहारा ले के खड़े होना और धीरे से बढ़ाना कदम और माँ बाप की ख़ुशी दुगनी होती है। और खास बात बेबी के आने से सबकी दिनचर्या बदल जाती है। और वक़्त कैसे बीतत जाता है किसी को पता ही नहीं चलता है। और माँ और बाप दोनों को बच्चे पर तब सबसे जाता प्यार आता है जब सुकून से सो जाता है।
"लब्बों. पे कभी बदुआ नहीं होती , एक माँ ही जो कभी खफा नहीं होती "
माँ ही है जो अपने बच्चों के बीमारीयों में उनके लिये रात भर जागती है। वो उनकी हर खुशी में खुशी खुशी शामिल होती है और माँ को घर में हर किसी की हर पसंद-नापसंद पता होती है लेकिन माँ की पसंद का किसी को नहीं। वो बच्चों हमेशा समझती रहती है किसी को मारना नहीं , किसी की चीज को हाथे मत लगाना , झूठ मत बोलना औरजिंदगी में सही रास्ते पर चलने की पप्रेरणा देती है और हमारे लिए दिन रात दुआ करती है है।माँ सबकी पहली अध्यापक होती है क्यूंकि हमारे जीवन कोअच्छा और सच्चा बनने के पहली सिख माँ देती है और हमें सही गलत क्या वो बताती है भगवान से हमें उनके स्वास्थ्य और अच्छे भविष्य के लिये प्रार्थना करनी चाहिए है,माँ को हमेशा खुश रखना चाहिए ,हमें माँ से लड़ना भी चाहिए लड़ना झगड़ना भी हमारा एक प्यार ही है
"अगर एक रिश्ते जिसमें कभी लड़ाई झगड़ा न हो तो समझ लो वो रिश्ता दिल से नहीं दिमाग से निभाया जा रहा है "
हमें भी माँ के मुस्कुराते चेहरे के पीछे एक ख़ामोशी होती है जिसे हमें समझने की जरुरत है कुछ देर साथ बिताने से ये ख़ामोशी खत्म हो सकती है।
रागिनी
( चण्डीगढ )