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एक बार की बात है युधिस्ठिर भीष्म पितामह के पास जाते है और कहते है हे तातश्री क्या आप मेरी एक दुविधा सुलझाएंगे क्या आप सच सच बताएंगे की स्त्री या पुरुष दोनों में से कौन सम्भोग के समय ज्यादा आनंद प्राप्त करते है. भीष्म बोले इस सम्बन्ध में मैं तुम्हे भंगस्वाना और सकरा की कथा सुनाता हूं. जिसमें तुम्हारे सवाल का जवाब छुपा है. बहुत समय पहले की बात है भंगस्वाना नाम का एक राजा रहता था. वह न्याय प्रिय और बहुत यशस्वी था लेकिन उसके कोई पुत्र नहीं थे. एक बालक की इक्षा में उस राजा ने एक अनुष्ठान किया जिसका नाम था अग्निस्तुता, क्योंकि उस हवन में केवल अग्नि भगवान का आदर हुआ था. इसलिए देवराज इंद्र काफी क्रोधित हो गए. इंद्र अपने गुस्से को निकालने के लिए एक मौके ढूंढे रखें ताकि राजा भंगस्वाना से कोई गलती हो और वह उसे दंड दे सके. पर भंगस्वाना इतना अच्छा राजा था कि इंद्र को कोई मौका ही नहीं मिल रहा था. जिस कारण से इंद्र का गुस्सा और बढ़ता जा रहा था.

एक दिन राजा शिकार पर निकला इंद्र ने सोचा यह सही समय है राजा से अपना बदला लेने का और इंद्र ने राजा को सम्मोहित कर दिया. राजा भंगस्वाना जंगल में इधर उधर भटकने लगे अपनी सम्मोहित हालत में वह सब सुध खो बैठे थे. ना उन्हें दिशाएं समझ आ रही थी और ना ही अपने सैनिक दिख रहे थे. भूख प्यास ने उन्हें और व्याकुल कर दिया था. अचानक उन्हें एक छोटी सी नदी दिखाई थी जो किसी जादू सी समुंदर लग रही थी. राजा उस नदी के तरफ बढ़े और पहले उसने अपने घोड़े को पानी पिलाया फिर खुद पिया. जैसे ही राजा नदी के अंदर प्रवेश किया पानी पिया उसने देखा कि वह बदल रहा है. धीरे-धीरे वह एक स्त्री में बदल गया. शर्म से बोझल वह राजा जोर-जोर से विलाप करने लगा. उसे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा उसके साथ क्यों हुआ.

राजा भंगस्वाना सोचने लगा हे प्रभु इस अनर्थ के बाद कैसे अपने राज्य वापस जाऊं. मेरे अग्निस्तुता अनुष्ठान से 100 पुत्र हुए हैं. उन्हें अब मैं कैसे मिलूंगा क्या कहूंगा मेरी रानी महारानी जो मेरी प्रतीक्षा कर रही है उनसे कैसे मिलूंगा. मेरे पौरुष के साथ साथ मेरा राज पाठ सब चला जायेगा. मेरी प्रजा का क्या होगा? इस तरह से विलाप करता राजा अपने राज्य वापस लौटा. स्त्री रूप में राजा जब वापस पहुंचे तो उसे देख सभी लोग अचंभित रह गए. राजा ने सभा बुलाई और अपनी रानियों पुत्रों और मंत्रियों से कहा कि अब मैं राजपाट संभालने के लायक नहीं हूं. तुम सभी लोग यहां सुख से रहो और मैं जंगल में जाकर अपना बाकी का जीवन बताऊंगा.
ऐसा कहकर वह राजा जंगल की तरफ प्रस्थान कर गए. वहां जाकर स्त्री रूप में एक तपस्वी के आश्रम में रहने लगी. जिसने उसने कई पुत्रों को जन्म दिया. अपने पुत्रों को वह अपने पुराने राज्य ले गयी और अपने पुराने बच्चों से बोली तुम मेरे पुत्र हो जब मैं एक पुरुष था यह मेरे पुत्र है जब मैं स्त्री हूं.मेरे राज्य को मिलकर भाइयों की तरफ संभालो. सभी भाई मिलकर रहने लगे.
सबको सुखी से जीवन व्यतीत करता देवराज इंद्र और ज्यादा क्रोधित हो गए और उनमें बदले की भावना फिर जाने लगी. इंद्र सोचने लगे कि ऐसा लगता है कि राजा को स्त्री में बदलकर मैंने उसके साथ बुरे की जगह अच्छा कर दिया है. ऐसा कह कर इंद्र ने एक ब्राह्मण का रूप धरा ( बदलकर) और पहुंच गया भंगस्वना के राज्य में. वहां जाकर उसने सभी राजकुमारों के कान भरने ( भड़काने ) शुरू कर दिए. इंद्र के भड़काने की वजह से सभी भाई आपस में लड़ पड़े और एक दूसरे को मार डाला.
जैसी ही भंगस्वना को इस बात का पता चला तो वह शोकाकुल हो गया. ब्राह्मण के रूप में इंद्र राजा के पास पहुंचा और पूछा वह क्यों रो रही है. भंगस्वना ने रोते-रोते पूरी घटना इंद्र को बताइ. तो इंद्र ने अपना असली रूप दिखाकर राजा को उसकी गलती के बारे में बताया. इंद्र ने कहा क्योंकि तुमने सिर्फ अग्नि देव को पूजा और मेरा अनादर ( तिरस्कार ) किया है इसलिए मैंने तुम्हारे साथ यह खेल रचा ( खेला ). यह सुनते ही भंगस्वाना इंद्र के पैरों में गिर पड़ा. अपने अनजाने में किए अपराध के लिए क्षमा मांगी. राजा की ऐसी दयनीय दशा देख इंद्र को दया आ गई, राजा को माफ करते हुए उनके पुत्रों को जीवित होने का वरदान दे दिया. इंद्र बोले हे स्त्री रुपी राजन अपने बच्चों में से किसी एक को जीवित कर लो. भंगस्वना ने इंद्र से कहा अगर ऐसी बात है तो मेरी उन पुत्रों को जीवित कर दो जिन्हें मैंने स्त्री की तरह पैदा किया है. हैरान होते हुए इंद्र ने इसका कारण पूछा. तो राजा ने जवाब दिया की हे इंद्र एक स्त्री का प्रेम एक पुरुष के प्रेम से बहुत अधिक होता है इसलिए मैं अपनी कोख से जन्मे बालकों का जीवन दान मानती हूं.
भीष्म ने इस कथा को आगे बढ़ाते हुए युधिस्ठिर को कहा कि इंद्र यह सब सुनकर प्रसन्न हो गए और उन्होंने राजा के सभी पुत्र को जीवित कर दिया. उसके बाद इंद्र ने राजा को दोबारा पुरुष रूप देने की बात की. इंद्र बोले तुम से खुश होकर हे भंगस्वना मैं वापस तुम्हें पुरुष बनाना चाहता हूं. पर राजा ने साफ मना कर दिया. स्त्री रुपी भंगस्वना बोला हे देवराज इंद्र मैं स्त्री रूप में ही खुश हूं और स्त्री ही रहना चाहता हूं. यह सुनकर इंद्र उत्सुक हो गए और पूछ बैठे कि ऐसा क्यों राजन. क्या तुम वापस पुरुष बनकर अपना राजपाठ नहीं संभालना चाहते. भंगस्वना बोला क्योंकि संभोग के समय स्त्री को पुरुष से कई गुना ज्यादा आनंद तृप्ति और सुख मिलता है इसलिए मैं स्त्री ही रखना चाहूंगा. इंद्र ने तथास्तु कहा और वहां से प्रस्थान कर गए. भीष्म बोले हे युधिष्ठिर यह बात स्पष्ट है कि स्त्री को संबंधों के समय पुरुष से ज्यादा सुख मिलता है.




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