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सुहाग की निशानिओं के वैज्ञानिक महत्व", Scientific importance of marks of suhag


किसी भी व्यक्ति के लिए शादी एक पवित्र बंधन होता है। हिन्दुओं में शादी दो परिवारों के आपस में जुड़ने का एक माध्यम भी है। सभी के लिए विवाह काफी मायने रखता हैं खासकर एक स्त्री के लिए जिसके मन में अपने भावी पति और परिवार के लिए काफी कुछ होता है। हिन्दु विवाह में वर और वधु दोनों को शादी के समय अनेक परम्पराओं और मान्यताओं का पालन करना होता है। खासकर एक हिन्दू स्त्री को अनेक नियमों का पालन करना पड़ता है। जिसे उसके सोभाग्य से जोड़ा जाता है। हिंदू महिलाओं में कलाइयों में चूड़ियां पहनना,पैरों में पायल पहनना,माथे पर बिंदी,नाक में कील, गले में मंगलसूत्र आदि पहनना कई लोगों को फैशन से ज्यादा कुछ नहीं लगता होगा। यहां तक कि इन्हें अपने बुजुर्गों के कहने पर धारण करने वाली महिलाएं भी इन्हें बोझ या फैशन समझकर पहन लेती हैं लेकिन,सिंदूर, मंगलसूत्र, चूड़ियां, लौंग और पायल इन सबसे जुड़ा विज्ञान कम ही लोग जानते हैं। आइए जानें..

1) सिंदूर लगाने के पीछे क्या है विज्ञान ::::- सिंदूर, एक स्त्री के विवाहित होने की निशानी है तथा इसे विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु की कामना करते लगाती हैं। इसे माथे पर बालों के बीच में लगाया जाता है। हिंदू धर्म में, इसे लगाने का हक केवल विवाहित महिलाओं को दिया गया है। एक प्रचलित मान्यता के अनुसार, देवी पार्वती ने अपने पति के सम्मान के लिए अपने जीवन की आहुति दी थी जिसके कारण सिंदूर को देवी पार्वती का प्रतीक माना जाता है। अतः, माना जाता है कि जो महिला अपने माथे पर सिंदूर धारण करती है, देवी पार्वती का हाथ उसके सर पर सदैव बना रहता है तथा देवी पार्वती हर समय उसके पति की रक्षा करती है, सिर के बालों के दो हिस्से(parting) में सिंदूर लगाया जाता है। इस बिंदु को महत्वपूर्ण और संवेदनशील माना जाता है। इस जगह सिंदूर लगाने से दिमाग हमेशा सतर्क और सक्रिय रहता है। दरअसल, सिंदूर में मरकरी होता है जो अकेली ऐसी धातु है जो लिक्विड रूप में पाई जाती है। यही वजह है कि सिंदूर लगाने से शीतलता मिलती है और दिमाग तनावमुक्त रहता है। सिंदूर शादी के बाद लगाया जाता है क्योंकि माना जाता है शादी के बाद ही महिला की जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं और दिमाग को शांत और व्यवस्थित रखना जरूरी हो जाता है।सिंदूर को नारी शक्ति का प्रतीक माना जाता है। यह शक्ति एक पत्नी को किसी भी मुश्किल घड़ी में अपने पति की रक्षा करने में मदद करती है।



2) कांच की चूड़ियां ::::- शादीशुदा महिलाओं का कांच की चूड़ियां पहनना शुभ माना जाता है। नई दुल्हन की चूड़ियों की खनक से उसकी मौजूदगी और आहट का एहसास होता है। लेकिन इसके पीछे एक विज्ञान छुपा है।दरअसल, कांच में सात्विक और चैतैन्य अंश प्रधान होते हैं। इस वजह से चूड़ियों के आपस में टकराने से जो आवाज़ पैदा होती है वह नकारात्मक ऊर्जा को दूर भगाती है।इसके साथ ही चूड़ियों का रंग भी महिलाओं के स्वास्थ्य और उसके वैवाहिक जीवन पर अपना प्रभाव डालते हैं। एसे में लोक प्रचलित मान्यता के अनुसार नवविवाहित स्त्रियों को हरे एवं लाल रंग की कांच की चूड़ियाँ पहनने के लिए कहा जाता है, महिलाओं को ये हरा रंग पहनने के लिए इसलिए कहा जाता है क्योंकि हरा रंग प्रकृति देवी का है।

3) मंगलसूत्र पहनने से जुड़ा विज्ञान :::- विवाह के अवसर पर वधू के गले में वर मंगलसूत्र पहनाता है। अनेक दक्षिण राज्यों में तो मंगलसूत्र पहनाए बिना विवाह की रस्म अधूरी मानी जाती है। वहां सप्तपदी से भी अधिक मंगलसूत्र का महत्व है। मंगलसूत्र में काले रंग के मोती की लडियों, मोर एवं लॉकेट की उपस्थिति अनिवार्य मानी गई है। इसके पीछे यह मान्यता है कि लॉकेट अमंगल की संभावनाओं से महिला के सुहाग की रक्षा करता है जबकि मोर पति के प्रति श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक है। लेकिन वहीं इसे जुडे विज्ञान कम ही लोग जानते होंगे। माना जाता है कि मंगलसूत्र धारण करने से रक्तचाप(ब्लड प्रेशर) नियमित रहता है। कहा जाता है कि भारतीय हिंदू महिलाएं काफी शारीरिक श्रम करती हैं इसलिए उनका ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहना जरूरी है। बड़े-बुजुर्ग सलाह देते हैं कि मंगलसूत्र छिपा होना चाहिए। इसके पीछे का विज्ञान यह है कि मंगलसूत्र (उसमें लगा सोना) शरीर से टच होना चाहिए ताकि वह ज्यादा से ज्यादा असर कर सके। काले रंग के मोती बुरी नजर से बचाते हैं तथा शारीरिक ऊर्जा का क्षय होने से रोकते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि मंगली दोष की निवृत्ति के लिए इसे धारण करने का विधान प्रचलित हुआ होगा।



4) बिछुआ पहनने के पीछे का विज्ञान ::::- शादीशुदा हिंदू महिलाओँ में पैरों में बिछुआ जरूर नजर आ जाता है। इसे पहनने के पीछे भी विज्ञान छिपा है। पैर की जिन उंगलियों में बिछिया पहना जाता है उसका कनेक्शन गर्भाशय और दिल से है। इन्हें पहनने से महिला को गर्भधारण करने में आसानी होती है और मासिक धर्म चक्र भी नियम से चलता है। वहीं, चांदी (आमतौर पर बिछुआ चांदी की होती है) होने की वजह से जमीन से यह ऊर्जा ग्रहण करती है और पूरे शरीर तक पहुंचाती है।
5) नाक की लौंग से जुड़ा विज्ञान :::- नाक में लौंग पहने के पीछे का विज्ञान कहता है कि इससे श्वास को नियमित होती है।

6) कुमकुम से जुड़ा विज्ञान ::::- कुमकुम भौहों के बीच में लगाया जाता है। यह बिंदु अज्ना चक्र कहलाता है। सोचिए जब भी आपको गुस्सा आता है तो तनाव की लकीरें ङोहों के बीच सिंमटी हुई नजर आती हैं। इस बिंदु पर कुमकुम लगाने से शlति मिलती है और दिमाग ठंडा रहता है। यह बिंदु भगवान शिव से जुड़ा होता है। कुमकुम, तिलक, विभूति, भस्म सब माथे पर ही लगाए जाते हैं। इनसे दिमाग को शांति मिलती है।
7) कान में बालियां, झुमके पहनने का विज्ञान ::::- कानों में झुमके, बालियां आदि पहनना फैशन ही नहीं। इसका शरीर पर अक्युपंचर प्रभाव भी पड़ता है। कान में छेद कराकर उसमें कोई धातु धारण करना मासिक धर्म को नियमित करने में सहायक होता है। शरीर को ऊर्जावान बनाने के लिए सोने के ईयररिंग और ज्यादा ऊर्जा को कम करने के लिए चांदी के ईयररिंग्स पहनने की सलाह दी जाती है। इसी तरह अलग-अलग तरह की स्वास्थ्य समस्याओं के लिए अलग-अलग धातु के ईयररिंग्स पहनने की सलाह दी जाती रही है।
8) पैरों में पायल पहनने से जुड़ा विज्ञान :::- चांदी की पायल पहनने से पीठ, एड़ी, घुटनों के दर्द और हिस्टीरिया रोगों से राहत मिलती है। साथ ही चांदी की पायल हमेशा पैरों से रगड़ाती रहती है जो स्त्रियों की हड्डियों के लिए काफी फ़ायदेमंद है। इससे उनके पैरों की हड्डी को मज़बूती मिलती है।

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