कई बार हम सोचते हैं की हम इस काम को नहीं कर सकते हैं, लेकिन अगर कोशिश की जाए तो हो सकता है कि वो काम हो जाता है. काफी रहस्यों भरा है इंसान का शरीर. इसके विपरीत कई बार कुछ काम ऐसे होते हैं जो दिखने में तो बहुत आसान होते हैं लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद भी हम ये काम नहीं कर पाते हैं.
एक भौंह को ऊपर उठाना हर किसी के बस की बात नहीं होती, इसके लिए चेहरे की मसल्स काफी फ्लेक्सिबल होनी चाहिए. जिससे की एक तरफ के मसल्स को ऊपर की ओर ले जाएं तो दूसरी ओर की मसल्स स्थिर बनी रहे. ऐसा बहुत कम लोग हीं कर सकते हैं. वैसे प्रेक्टिस करने से इसे सीखना असंभव नहीं है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि आबादी के 10-20 फ़ीसदी लोग हीं अपने कान को बिना छुए हिलाने की क्षमता रखते हैं. जो व्यक्ति अपना एक भौंह ऊपर कर सकता है, उसे खान को भी मोड़ लेने की संभावना ज्यादा रहती है
हममें से कम लोग हीं ऐसे होते हैं जो अपनी जीभ को बीच से मोड़ कर नली जैसी आकार का बना देते हैं. पहले तो ये माना जाता था कि ये गुण अनुवांशिक होते हैं. लेकिन यूनिवर्सिटी ऑफ डेलवेयर के रिवोल्यूशनरी बायोलॉजिस्ट जॉन मैकडोनाल्ड की रिसर्च कहती है कि किसी सिंगल जीन के कारण ऐसा नहीं होता, बल्कि इसमें पर्यावरण का योगदान रहता है. जहां तक प्रेक्टिस करके ऐसा सीखने की बात हो तो भी मुश्किल है. मैकडोनाल्ड ने 33 लोगों को 1 महीने का प्रेक्टिस करने की बात कही और महीने के अंत में इन 33 में से सिर्फ एक व्यक्ति हीं ऐसा था जिसने थोड़ा बहुत ऐसा किया.
इंसान की क्षमता को लेकर काफी गलतफहमी बनी हुई है. लोग सोचते हैं कि ऐसा करना असंभव होता है. यही कारण है कि गिनीज बुक से रोज लगभग 5 लोग कांटेक्ट करके इस बात का दावा करते हैं कि वे अपनी जीभ से अपनी कोहनी को छू सकते हैं. जबकि ऐसा हर कोई नहीं कर पाता है. हां लेकिन जिसकी कंधे की मसल्स और पीठ लचीली हो, वो थोड़ी कोशिश के बाद ऐसा कर सकता है.
आप अपने बीच वाली उंगली को बहुत हीं आसानी से हथेली की तरफ मोड़ सकते हैं, लेकिन अगर उसी उंगली को ऐसे मोड़ना है कि रिंग फिंगर सीधी रहे थोड़ी सी भी ना मुड़े, तो मुश्किल होगा. क्योंकि दोनों उंगलियों की मसल्स में कनेक्शन होने की वजह से ऐसा संभव नहीं हो पाता है.
खुद को गुदगुदी करना
दूसरा कोई गुदगुदी लगाए तो बहुत हंसी आती है. लेकिन अगर आप खुद को गुदगुदी करके हंसने की कोशिश करें तो ये असंभव सा होगा. लेकिन अगर आप ऐसा कर पाते हैं, तो ये एक बहुत हीं खतरनाक इशारा है. साइंटिस्ट के अनुसार शिजोफ्रेनिया नामक गंभीर मनोरोग के लक्षणों वाले लोग ऐसा कर पाते हैं. दरअसल जब हम खुद को गुदगुदी लगाते हैं, तो ब्रेन के न्यूरॉन्स का रिस्पांस कैंसल हो जाता है. और हमें गुदगुदी का एहसास बिल्कुल भी नहीं होता.
जिस इंसान की जीब लंबी और फ्लेक्सिबल होती है वो अपने नाक को जीभ से छू सकते हैं. ये क्षमता 10 फिसदी पॉपुलेशन में हीं मौजूद होती है. मेडिकल लैंग्वेज में इसे गुर्लिन साइन कहा जाता है. बाकी 90 फ़ीसदी के लिए ऐसा कर पाना काफी मुश्किल होता है.
अगर आपसे ये कहें कि अपने पैरों के पंजे घुमाने हैं तो आपको यह काफी आसान लगेगा. लेकिन अगर ये कहें कि दाएं पैर को क्लॉकवाइज घुमाइए और उसी समय बाएं पैर को 6 लिखने की तरह घूमाएं तो आपका दिमाग चक्कर में पड़ जाएगा. दरअसल लेफ्ट ब्रेन शरीर के दाहिने हिस्से को संचालित करने का काम करता है और ये एक हीं समय में दो अपोज़िट मूवमेंट को संचालित कर पाने में असमर्थ होता है.
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