इंटरनेट दिमाग में जंग लगा दिया है इसमें कोई दो राय नहीं है हम यही हाल है आजकल, न ही किसी के पास व़क्त है, न ही फ़ुर्सत… क्योंकि ज़िंदगी ने जो रफ़्तार पकड़ ली है, उसे धीमा करना अब नमुमकिन है ये चलती जिंदगी के बीच
में
जो कभी–कभार कुछ पल मिलते थे, वो भी कहीं दूर जा चुके हैं, क्योंकि हमारे हाथों में, हमारे कमरे में और हमारे खाने के टेबल पर भी एक चीज़ हमारे साथ रहती है हमेशा, जिसे मोबाइल इंटरनेट कहते हैं., इंटरनेट किसी वरदान से कम नहीं.
आजकल तो हमारे सारे काम इसी के भरोसे चलते हैं, जहां यह रुका, वहां लगता है मानो सांसें ही रुक गईं.कभी ज़रूरी मेल भेजना होता है, तो कभी किसी सोशल साइट पर कोई स्टेटस या पिक्चर अपडेट करनी होती है
ऐसे में इंटरनेट ही तो ज़रिया है, जो हमें मंज़िल तक पहुंचाता है.
…हाल ही पिछले कुछ महीने में कई बार दंगे , हड़ताल की वजह से कई बार इंटरनेट बंद हुआ है तब तो ऐसा लगता था जैसे कोई काम ही नहीं है सब फ्री कोई काम नहीं , लेकिन कभी कभी ऐसा लगता है इंटरनेट ने हमारे निजी पलों को हमसे छीन रहा है..हमारे रिश्तों के लिए भी कुछ नहीं बचे
कहाँ गए फ़ुर्सत के पल?
ऑफिस हो या स्कूल–कॉलेज, पहले सभी अपने काम होने के बाद का जो भी समय हुआ करता था, वो परिवार के साथ बीतता था.
अब तो इंटरनेट पर स्ट्रेस रिलीज़ हो जाता है की कौन कहा जा रहा है?, कौन कहा है ? कोई हॉस्पिटल में है , पार्टी में सब स्टेट में किसी से बात करने की जरुरत ही नहीं, आप खुश है या उदास सब स्टेट से पता लगा जाता है।
आपनो से क्या बात करे ये भूल गए और तुरंत लैपटॉप और मोबाइल में लग जाते है की किसने कोनसी फोटो और स्टेट अपडेट किया,
वर्ल्ड में क्या चल रहा है.
किसके फोल्लोवेर्स बढ़े है कितने हुए , कितने लाइक्स हुए, कितने कमैंट्स।हमारी फोटो को किस किस ने लाइक और कमेंट किया। और अपने फॉलोवर्स बढ़ाने के नयी नयी पोस्ट और रिक्वेस्ट भेजते है जिन्हे हम जानते भी नहीं उन्हें लाइक और फॉलो करने लग जाते है ताकि हमारे फोल्लोवेर बढे।
ऑफिस हो या स्कूल–कॉलेज, पहले सभी अपने काम होने के बाद का जो भी समय हुआ करता था, वो परिवार के साथ बीतता था.
किसके फोल्लोवेर्स बढ़े है कितने हुए , कितने लाइक्स हुए, कितने कमैंट्स।हमारी फोटो को किस किस ने लाइक और कमेंट किया। और अपने फॉलोवर्स बढ़ाने के नयी नयी पोस्ट और रिक्वेस्ट भेजते है जिन्हे हम जानते भी नहीं उन्हें लाइक और फॉलो करने लग जाते है ताकि हमारे फोल्लोवेर बढे।
आने वाले दिनों में नई मोबाइल में ऑफलाइन मोड का बटन पर हटा दिया जायेगा ही क्यूंकि ऑफलाइन की जरूरत ही नहीं होती.
कहीं इंटरनेट कुछ गलत है तो कुछ अच्छा है इंटरनेट की बदौलत ही हम सोशल साइट्स से जुड़ पाए और उनके ज़रिए अपने वर्षों पुराने दोस्तों व रिश्तेदारों से फिर से कनेक्ट हो पाए, लेकिन इंटरनेट पर वो बात कहाँ जो सामने मिल कर बैठ कर बात करने में साथ बैठ के बाते करने का घूमने का।
शायद ही आपको याद आता हो कि आख़िरी बार आपने अपने परिवार के साथ बैठकर चाय पीते हुए स़िर्फ इधर–उधर की बातें कब की थीं? या अपने छोटे भाई–बहन के साथ टहलते हुए मार्केट कब गए होंगे?
बिना मोबाइल के आप अपने परिवार के सदस्यों के साथ कब एक दिन गुजरा था ?
अपनी बेडरूम में बिना लैपटॉप के, बिना ईमेल चेक किये कब गए ?
अब एक जनरेशन पहले के पैरेंट्स ही जान पाएंगे, क्योंकि आजकल स़िर्फ पिता ही नहीं, मम्मी भी इंटरनेट के बोझ तले दबी हैं.
वर्किंग वुमन फिर
भी कहीं न कहीं वो मैनेज कर रही हैं, पर जहां तक पुरुषों की बात है, युवाओं का सवाल है, तो वो पूरी तरह इंटरनेट की गिरफ़्त में हैं.
जिन लोगों के पास इंटरनेट कनेक्शन नहीं होता ,उन पर लोग हैरान होते हैं, उन्हें बोरिंग समझा जाता है.
सेहत पर असर
सोशल साइट्स पर बहुत ज़्यादा समय बिताना एक तरह का एडिक्शन है. यह एडिक्शन ब्रेन के उस हिस्से को एक्टिवेट करता है, जो कोकीन जैसे नशीले पदार्थ के एडिक्शन पर होता है.
इंटरनेट का अधिक इस्तेमाल करनेवालों में स्ट्रेस, निराशा, डिप्रेशन और चिड़चिड़ापन पनपने लगता है. उनकी नींद भी डिस्टर्ब रहती है. वो अधिक थके–थके रहते हैं. ज़िंदगी का सुकून कहीं खो–सा जाता है.
आजकल सेल्फी भी एक क्रेज़ बन गया है, जिसके चलते सबसे ज़्यादा मौतें भारत में ही होने लगी हैं.
लोग यदि परिवार के साथ कहीं घूमने भी जाते हैं, तो उस जगह का मज़ा लेने की बजाय पिक्चर्स क्लिक करने के लिए बैकड्रॉप्स ढूंढ़ने में ज़्यादा समय बिताते हैं. एक–दूसरे के साथ क्वालिटी टाइम गुज़ारने की जगह सेल्फी क्लिक करने पर ही सबका ध्यान रहता है, जिससे ये फुर्सत के पल भी यूं ही बोझिल होकर गुज़र जाते हैं और हमें लगता है कि इतने घूमने के बाद भी रिलैक्स्ड फील नहीं कर रहे.
मूवी देखने या डिनर पर जाते हैं, तो सोशल साइट्स के चेकइन्स पर ही ध्यान ज़्यादा रहता है. इसके चलते वो ज़िंदगी की ़फुर्सत से दूर होते जा रहे हैं.
सार्वजनिक जगहों पर भी लोग एक–दूसरे को देखकर अब मुस्कुराते नहीं, क्योंकि सबकी नज़रें अपने मोबाइल फोन पर ही टिकी रहती हैं. रास्ते में चलते हुए या मॉल में…जहां तक भी नज़र दौड़ाएंगे, लोगों की झुकी गर्दन ही पाएंगे. इसी के चलते कई एक्सीडेंट्स भी होते हैं.
इंटरनेट की देन: पोर्न साइट्स भी पहुंच से दूर नहीं
पोर्न वीडियोज़ देखे जा सकते हैं. चाहे आप किसी भी उम्र के हों. इंटरनेट के घटते रेट्स ने इन साइट्स की डिमांड और बढ़ा दी है. बच्चों पर इसका बुरा असर डालती हैं, वहीं बड़े भी इसकी आदि हो जाते है अपनी सेक्स व पर्सनल लाइफ को रिस्क पर ला देते हैं. इसकी लत ऐसी लगती है कि वो रियल लाइफ में भी अपने पार्टनर से यही सब उम्मीद करने लगते हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि इन वीडियोज़ को किस तरह से बनाया जाता है. इनमें ग़लत जानकारियां दी जाती हैं, जिनका उपयोग निजी जीवन में संभव नहीं.
पोर्न वीडियोज़ देखे जा सकते हैं. चाहे आप किसी भी उम्र के हों. इंटरनेट के घटते रेट्स ने इन साइट्स की डिमांड और बढ़ा दी है. बच्चों पर इसका बुरा असर डालती हैं, वहीं बड़े भी इसकी आदि हो जाते है अपनी सेक्स व पर्सनल लाइफ को रिस्क पर ला देते हैं. इसकी लत ऐसी लगती है कि वो रियल लाइफ में भी अपने पार्टनर से यही सब उम्मीद करने लगते हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि इन वीडियोज़ को किस तरह से बनाया जाता है. इनमें ग़लत जानकारियां दी जाती हैं, जिनका उपयोग निजी जीवन में संभव नहीं.
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