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एक मुठ्ठी बेर

आज का बचपन कहीं खो सा गया है , अगर मैं आज से ज्यादा नहीं 15 -20 साल पीछे की बात करू तो तब के मुकाबले आज के बच्चे ज्यादा समझदारी वाले बचपन गुजर रहे हैं। उस वक़्त के बचपन में बच्चे गलियों में कन्चे , स्टापू , कबड़ी , शाम को छु छपाई , चोर पुलिस , खो-खो , पोसम पा बाई पोसन पा ऐसे न जाने कितने खेल , अब तो ये सब किताबों और आर्टिकल में ही सुनाई देती है।
खैर समझदार बचपन की बात से एक वाक़्या याद आया जो मैं आपको बताता हूँ ,मेट्रो सिटी में शुभ और उसकी मम्मी सब्ज़ी लेने रोजाना की तरह बाजार पैदल ही जा रहे थे , क्यूंकि सब्जी बाज़ार घर से ज्यादा दूर नहीं था इसी बहाने दोनों की सैर हो जाती थी। शुभ अभी 3 साल का होने वाला है और शुभ की मम्मी की उम्र तकरीबन 28 की हो रही होगी। 
सब्जी मंडी में पिछली गली के मिश्रा जी की भी दूकान थी और मिश्रा जी की पत्नी के साथ भी उठना बैठना था तो इस कारण मिश्रा जी थोड़ा बहुत सामान लेने पे पैसे लेने में बहुत दिक्कत करते थे , इसलिए शुभ की मम्मी मिश्रा जी की दुकान से सामान लेने में कतराती थी। रोजाना की तरह मिश्रा जी की दुकान से बच के निकलना कोई आम बात तो है नहीं देर सवेरे आदमी पकड़ में आ ही जाता है आज वो ही दिन था , अचानक मिश्रा जी की आवाज़ आई ,बहन जी !

मिश्रा जी कोई 40 साल के होंगे और 20 साल से सब्जी मंडी में ही काम कर रहे थे , आवाज़ इतनी दमदार थी की सड़क पर चलती सारी बहन जी रुक गईं और सब मिश्रा जी की तरफ ही देखने लगीं , लेकिन मिश्रा जी ने शुभ की मम्मी की तरफ इशारा किया। ऐसा लग रहा था जैसे मिश्रा जी ने मुफ्त में फल बाँटने की कसम ही खा रखी थी। चलो अब तो पकड़ में आ गयी थी। तो दौर शुरू हुआ हाल चाल पूछने का बहन जी थोड़ा फल फ्रूट लेते जाइये , मैडम ने कहा नहीं फल फ्रूट है फिर ले जाउंगी मिश्रा जी ने पुछा और छोटू कैसा है। 
छोटू की तरफ मिश्रा जी नज़र गई और शुभ की मम्मी भी , लेकिन छोटू की नज़र एक टोकरी पे थी जिसमे हरे,पीले नीले गुलाबी बेर पड़े हुए थे (कुछ लोग कहानी की वजाइ नीले वेर सोच रहें हैं अरे भाई कोई काला अंगूर गिर गया होगा दिमाग मत लगाओ कहानी पे ध्यान दो ) ।

मिश्रा जी को बात सामझते देर न लगी की शुभ को बेर पसंद आ गए है। उन्होंने कहा छोटू बेर उठा लो। शुभ ने अपनी मम्मी की तरफ देखा और पीछे हट गया , तब शायद मिश्रा जी को लगा उन्होंने गलत अंदाज़ा लगाया। फिर हाल चाल और इधर उधर की बातो में अचानक फिर मिश्रा जी की नज़र छोटू पे पड़ी , मिश्रा जी ने कहा अरे बहनजी छोटू को बोलिये बेर उठा ले। 
शुभ की मम्मी ने कहा हां बेटा उठा लो बेर , लेकिन छोटू फिर पीछे हटा , ऐसा ही कई बार हुआ , अब मिश्रा जी नेता जी की तरह अपनी जगह यानि कुर्सी से हिलना नहीं चाहते थे , लेकिन उनको महसूस हो गया मुझे ही उठना पड़ेगा और बोले छोटू उठा के ही माना , और मिश्रा जी धीरे धीरे टेड़े मेडे होते हुए , बेर के टोकरे से एक मुट्ठी बेर निकले और शुभ के हाथ में रखा और कुछ बेर छोटू के शर्ट और पेंट की जेब में रख दिए बेर इतने बड़े थे की तीनो जेब बाहर जाने के भी बहुत से बे मिश्रा जी के हाथ में थे तो वो उन्होंने , सब्जी वाले लिफाफे में डाल दिए ।
अब वहां से निकलने के बाद , रास्ते में शुभ की मम्मी ने शुभ से बात करने लगी की आप बहुत जिद्दी हो गए हो आप बात नहीं मानते , अंकल ने कितनी बार तुम्हे कहा और मैंने भी तुम्हे बोल दिया था फिर भी तुमने बेर क्यों नहीं उठाया ? 

तो शुभ ने कहा मम्मी आप समझती नहीं हो , मेरे हाथ कितने छोटे है अगर मैं उठाता तो थोड़े आते हाथ में, अंकल ने उठा के दिया किते सारे आ गए सब जेब भर गयी।
इस बात से मुझे अहसास हुआ की अब बचपन पहले से कही ज्यादा समझदार हो गया है मगर बचपन कहीं खो गया है।

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